09 May 2020

मेंढकों की अनोखी दुनिया

मेंढक दुनिया के अदभुत व अनोखे प्राणी हैं। पूरी दुनिया में मेंढकों की लगभग पांच हजार प्रजातियां पायी जाती हैं। इनका अस्तित्व पृथ्वी पर 265 करोड़ सालों से है। मेंढक प्राय: दुनिया के सभी कोनो में पाये जाते हैं मगर इनकी प्रमुख आबादी ऊष्णकटिबंधीय वनों में पायी जाती है। मेंढकों की दुनिया बहुत ही रोचक तथा विचित्र होती है। नीचे हम इनके कुछ अनोखे तथ्यों को साझा करने का प्रयास कर रहे हैं।

नोखा आकार

कुछ मेंढकों का आकार हमारे अंगूठे के नाखून के बराबर होता है। इस आकार के मेंढकों को ’क्यूबन डवार्फ’ यानि ‘क्यूबा के बौने’ के नाम से जाना जाता है। इनकी लंबाई एक सेंटिमीटर तक होती है। इनकी सबसे बड़ी प्रजाति ‘गोलियथ’ मेंढकों की लंबाई एक फुट तक होती है और वजन साढ़े तीन किलोग्राम से ज्यादा तक होता है। 

नोखी छलांग 

मेंढक अपनी लंबाई से 20 गुणा ज्यादा लंबी छलांग लगा सकते हैं। यूरोप की पहाडियो में रहनेवाला एक मेंढक अपनी छलांग से तीन मीटर तक का फासला तय कर लेता है। इनकी इसी खूबी के चलते अमेरिका एंव दक्षिण अफ्रीका के देशों में ‘मेंढकों की रेस’ आयोजित किये जाते हैं। कुछ उड़नेवाले या हवा में तैरनेवाले मेंढकों को ‘फ्लाईंग फ्राग’ कहा जाता है। 

नोखे अंडे 

कुछ मेंढक ‘जैली’ के रूप में सैकड़ों अंडे देते हैं जो तालाब की सतह पर तैरते हैं। एक सामान्य मादा इन समूहों में कोई दो हजार अंडे देती है। ऐसे समूहों के ज्यादातर अंडे नष्ट हो जाते है मगर बाकि बहुत सारे बच भी जाते हैं। कम अंडे देने वाले मेंढकों की प्रजाति अपने अंडों को बचाने के लिए तरह-तरह के प्रयास करते हैं। इसी में शामिल दक्षिण अमेरिका की पाइपा जाति के मेंढकों की पीठ पर छोटे- छोटे गड्डे होते हैं। वे अपने अंडों को पीठ के इन्ही गड्डों में रखते हैं। पीठ से निकली अतिरिक्त त्वचा की एक परत अंडों को ढक लेती है। इन अंडों से बाहर निकले टैडपोल इस अतिरिक्त त्वचा को खाकर बाहर निकलते हैं। मगर इससे मादा मेंढक को कोई तकलीफ नहीं होती और उसे इस बात का पता भी नहीं चलता कि उसके बच्चे उसकी पीठ पर से जा चुके हैं। 

अपने अंडों को बचाने हेतु एक प्रजाति की मादा को विशेष त्याग करते भी देखा जा सकता है। क्वींसलैंड (आस्ट्रेलिया) की मादा मेंढक अपने अंडों को निगल जाती है। ये अंडे उसके पेट में ही विकसित होते हैं। इस दौरान मादा मेंढक कुछ नहीं खाती है। इसके अलावा कुछ मेंढक अपने अंडों को सुरक्षित रखने के लिए पेड़ों पर घोसला भी बनाते हैं। इसके लिए ये ऐसे पेड़ चुनते हैं जिसकी डालियां तालाब के ऊपर झुकी हुई हों। इन अंडों से निकलते ही टैडपोल पानी में कुद पड़ते हैं। 

नोखी त्वचा 

मेंढकों की सबसे अनोखी खासियत उनकी त्वचा होती है। ये अपने आसपास के वातावरण के हिसाब से अपना रंग बदलने की क्षमता रखते हैं। मेंढकों की चमड़ी में मौजूद रंजक या पिगमेंट इन्हें रंग बदलने की काबिलियत प्रदान करते हैं। कैमेरून व त्रिनीदाद में सबसे रंगीन मेंढक पाये जाते हैं। मगर चटक रंग वाले मेंढकों से शिकारी दूर ही रहते हैं क्योंकि इनकी चमड़ी में खतरनाक जहर पाया जाता है। प्रत्येक जहरीली प्रजाति में जहर की अलग मात्रा पायी जाती है। दक्षिण अमेरिका में पाये जानेवाले ‘टेरिबल फ्राग’ नामक मेंढकों की प्रजाति के चमड़ी में मौजूद जहर की दो माइक्रोग्राम जहर की मात्रा भी एक इंसान की जान ले सकती है। इसी जाति के एक अन्य मेंढक का नाम ‘ऐरो पॉयजन फ्राग’ यानी तीर के जहर वाला मेंढक है। दक्षिण अमेरिकी आदिवासी इनके जहर से अपने शिकार के लिए जहर बुझे तीर बनाते हैं। 

मेंढकों की चमड़ी की सबसे बड़ी खासियत यह होती कि ये अपनी चमड़ी ही से न केवल सांस लेते हैं बल्कि पानी भी पीते हैं। इनकी चमड़ी में मौजूद नमी में आक्‍सिजन घुलकर शरीर के भीतरी अंगो तक पहुंचती है। इसे जांचने का सबसे बढ़ि‍या तरीका होता है कि यदि आप किसी मेंढक को पानी से भरे गिलास में डाल दें तो कुछ देर बाद गिलास में भरा पानी आधा हो जाएगा। आस्ट्रेलिया के रेगिस्तान में रहनेवाले मेंढकों की एक प्रजाति के शरीर में पानी की विशाल थैलियां होती हैं। इन्हीं पानी की थैलियों के सहारे ये मेंढक रेत के नीचे दबे कई साल गुजार देते हैं। जब सालों बाद बरसात होती है तो ये बाहर आकर अपनी पानी की थैलियों को दोबारा भर लेते हैं।

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नोखी भूख 

मेंढकों की भूख भी अनोखी व असाधारण होती है। देखा गया है कि कभी-कभी मेंढक शिकार की उपलब्धता रहने तक शिकार करते रहते हैं। इन्हें ऐसा करते देख यह प्रतीत होता है जैसे इनके शरीर में भूख शांत करनेवाली प्रणाली ही नहीं है। लेकिन ऐसा कभी-कभार ही होता है। मेंढक एक बार में अपने शरीर के वजन के दस से पैंतीस प्रतिशत भार के बराबर तक कीड़े-मकोड़े खा जाते हैं। 

नोखी आवाज 

केवल नर मेंढक ही ‘टर्र- टर्र’ की आवाज निकालते हैं। लेकिन सभी मेंढक सिर्फ ‘टर्र- टर्र’ की आवाज ही नहीं निकालते हैं। पेड़ पर रहनेवाली मेंढक की एक प्रजाति की आवाज इतनी तेज होती है कि उसके सामने आदमी की आवाज दब जाये। इसी प्रकार ‘बुल फ्राग’ की आवाज किसी बड़े जानवर की तरह होती है। ‘टाइगर फ्राग’ की आवाज कपड़ा फाड़ने जैसी होती है वहीं एक दूसरी मेंढक की प्रजाति बिल्ली के बच्चों की तरह ‘म्याऊं- म्याऊं’ की आवाज निकालती है। जापानी मेंढक, जिन्हेंं ‘फ्लाइंग फ्राग’ कहते हैं, बिल्कुल चिडि़यों के गाने की तरह आवाज निकालते हैं। मेंढक अलग-अलग कामों के लिए अलग-अलग तरह की आवाजें निकालने में माहिर होते हैं। आप कभी इन्हेंं ‘डुएट’ गाने तो कभी ‘कोरस’ गाते हुए भी सुन सकते हैं। 

नोखी उम्र 

मेंढकों की औसत उम्र 12 साल आंकी गई है। ‘क्लॉड फ्राग’ नामक मेंढकों की प्रजाति को 33 साल तक जीते देखा गया है। ‘हाइला मेंढकों’ की 22 साल तक की उम्र दर्ज की गई है। मेंढकों की उम्र का पता लगाने का तरीका भी दिलचस्प है। मेंढकों की हड्डि‍यों में हर साल एक गोल छल्ला बनता है। ठीक वैसे ही जैसे पेड़ की तनों में। इन्हें ‘वृद्धि वलय’ या ‘ग्रोथ रिंग’ कहते हैं। इन्हीं गोल छल्लों को गिनकर जीव विज्ञानी मेंढकों की उम्र का पता लगाते हैं।।


संबंधित प्रश्नोेत्‍तर


मेंढकों को बारिश का सूचक क्यों माना जाता है?

मेंढको की संवेदनशील त्वचा के नीचे सूक्ष्म इंद्रियां होतीं हैं जिससे वे न केवल सांस लेते हैं बल्‍क‍ि पानी भी पीते हैं। बारिश होने से पहले किसी इलाके में निम्न दबाव का वातावरण बनता है। इसके कारण हवा में होनेवाले आर्दता व तापमान के बदलाव को मेंढक अपनी संवेदनशील त्वचा से महसूस कर बाहर आकर टर्र- टर्र की आवाज निकालने लगते हैं। इसी कारण मेंढको को वसंत के आगमन का सूचक भी माना जाता है। दुनिया के कुछ इलाकों में मेंढको को गर्मियों की रात में भी टर्राते हुए सुना जा सकता है।

मेंढक शाकाहारी होते हैं या मांसाहारी?

मेंढको की खुराक उनके जलवायु के तापमान पर निर्भर करता है। वैज्ञानिक विश्लेषणों में यह देखा गया है कि गर्म तथा शुष्क तापमान वाले इलाकों में मेंढको के लारवे व वयस्क मेंढक शाकाहारी खुराक को अपनाते हैं। वहीं ठंडे इलाकों में रहने वाले मेंढको के लारवे तथा वयस्क मेंढक ज्यादातर मांसाहारी खुराक को अपनाते हैं। इसी प्रकार विभिन्न इलाकों में रहनेवाले मेंढक मौसमी तथा तापमान के बदलावों के अनुरूप अपने खुराक को बदलते रहते हैं। इनकी यह खासियत इन्हें पारिस्थिकि तंत्र के स्वास्‍थ्‍य का सूचक भी बनाती है।

जन्तु जगत में मेंढको की क्या भूमिका होती है?

मेंढक उभयचर (Amphibians) जीवों की श्रेणी में आते हैं। ये उभयचर जीवों की श्रेणी में पाये जानेवाले प्रमुख जीव हैं। ये पारिस्थिकि में खाद्यश्रेणी के द्वितीयक उपभोक्ता होते हैं। मेंढको के लारवे अथवा टैडपोल पोषण चक्र में अहम भूमिका निभाते हैं। ये शाकाहारी व मांसाहारी दोनों होते हैं तथा रीढ़वाले (Vertebrates) व बिना रीढ़वाले (Invertebrates) जीवों के कुल खुराक का प्रमुख हिस्सा होते हैं। वयस्क मेंढक कीटों (Pest) की जनसंख्या नियंत्रित रखने में अहम भुमिका निभाते हैं।

जलवायु परिवर्तन मेंढको की आबादी पर नाकारात्मक प्रभाव डाल रही है। जलवायु परिवर्तन के अंतर्गत होनेवाले प्रभावों जैसे अत्यधिक गर्मी व गर्म तरंगे, सूखा तथा बाढ़ इन उभयचरों के प्राकृतिक निवास स्थानों को प्रभावित कर इनको विलुप्‍त‍ि के कागार पर भेज रहे हैं।

मेंढकों की अनोखी दुनिया
Posted by Words That Matter on Saturday, May 9, 2020